Baji Prabhu Ki Kahani |
Bhartiya Itihas Ki Kahani: Baji Prabhuभारतीय इतिहास की कहानी: बाजी प्रभु
बात 1660 की है। वीर शिवाजी दिल्ली के मुग़ल बादशाह तथा मुगल साम्राज्य के दूसरे सूबों के शासकों की बगल में छूरी बन बैठे थे।
शिवाजी पन्हाला दुर्ग में रहा करते थे। शिवाजी और उस दुर्ग पर अधिकार करने के लिए बिजापुर के सुलतान ने सलाबत खाँ को थोड़ी फ़ौज के साथ भेजा। कई दिन तक फ़ौज दुर्ग को घेरे हुए थे।
एक दिन शिवाजी के अनुचर सफ़ेद झंडे लिये हुए दुर्ग के बाहर आये और सलाबत खाँ से पूछा- आप किन शर्तों पर दुर्ग पर से अपनी फौज को हटायेंगे !
उधर शिवाजी के अनुचर सलाबत खाँ से मंत्रणा कर रहे थे, तभी शिवाजी बूढ़ें का वेष धारण कर अपने कुछ साहसी अनुचरों के साथ दुर्ग के पीछे वाले द्वार से भाग गये। थोड़ी दूर पर उनके लिए घोड़े तैयार थे।
जब शिवाजी तथा उनके अनुचर अपने वेश बदलकर घोड़ों पर सवार हुए, तब दुश्मन के एक गुप्तचर ने उन्हें देख लिया। फिर क्या था, सलाबत खाँ ने अपनी फ़ौज़ के साथ उनका पीछा किया।
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