Hindi Kahani Mahabharat Ki: पाँडव तथा कौरवों की जन्म की कहानी
Pandav Ke Janam Ki Katha: Maharaja Pandu Ka Shrapपांडव के जन्म की कथा: महाराज पांडू का श्राप
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Pandav Ke Putra Ke Janam Ki Kahani Mahabharat Story |
महाराज पांडू बहुत ही पराक्रमी व धर्मात्मा राजा थे। वे बहुत दयालु, दानी और प्रजा के हर दुःख-सुख के साथी थे। तभी देश की सारी प्रजा उससे हार्दिक प्यार करती थी।
एक बार राजा पांडू अपनी पत्नी कुन्ती व माद्री सहित शिकार खेलने गये तो रास्ते में किन्दम नामक तपस्वी मुनि, मानव लज्जा के कारण पति-पत्नी, हिरण और हिरणी का रूप धारण कर, सम्भोग आनन्द ले रहे थे। पांडू राजा ने उन्हें अपना शिकार समझकर उन पर तीर चलाया।
उसी समय हिरण के सीने में तीर लगा। वह सम्भोग आनन्द को बीच में छोड़ फिर मुनि के रूप में वापस आये और उसी समय राजा को शाप दिया
“हे राजन, जिस प्रकार तुमने सम्भोग आनन्द के समय मेरा खून किया है। इसी प्रकार तुम भी स्त्री सम्भोग के समय ही मृत्यु प्राप्त करोगे।"
राजा पांडू मुनि का शाप सुनकर बहुत दुःखी हुये, अपनी दोनों पत्नियों को मुनि के शाप के बारे में बताया।
दोनों पत्नियों ने मुनि के शाप को तोड़ने के लिये उसी समय जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा की और वे सब नागशत पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगे।
सबने मिलकर घोर तपस्या तो की परन्तु उनके मनों में यह भय तो हर समय लगा रहता कि यदि वे ऐसे ही जीवन भर तपस्या करते रहे तो उनके वंश का क्या होगा? इस प्रकार तो उनका वंश ही मिट जायेगा...कोई पांडवों का नाम तक नहीं लेगा।
दूसरी ओर मृत्यु का भय था-जिसे मुनि ने शाप के रूप में दिया था। अब तो केवल अपनी तपस्या के बल पर ही सन्तान प्राप्त कर सकते थे। हुआ भी यही। वर्षों की तपस्या के बाद कुन्ती को धर्मराज की ओर से वरदान मांगने का आदेश हुआ। सुबह के समय स्वयं धर्मराज प्रकट हुये।
“कुन्ती! तुम्हारी तपस्या सफल हुई-तुम अपना मनचाहा वर मांग सकती हो।"
"महाराज! मुझे आप जैसे किसी धर्मी पुत्र की ही इच्छा है...तभी तो मैंने इतने वर्षों तक केवल आपकी ही तपस्या की है...।"
“ठीक है-तुम्हारी यह मनोकामना अवश्य पूरी होगी।" यह कहकर धर्मराज लुप्त हो गये।
कुछ समय पश्चात् धर्म पुत्र युधिष्ठर का जन्म हुआ। युधिष्ठर के पश्चात् राजा पांडु और कुन्ती ने वासुदेव, वरुण की पूजा करके उनसे भीम को वरदान के रूप में मांग लिया। भीम महा शक्तिशाली वीर था। उसके बचपन की यह घटना मां कुन्ती को हर समय याद रहती।
जब एक बार कोई शेर उनकी कुटिया में आ गया। कुन्ती शेर को देखकर भाग खड़ी हुई-जल्दबाजी में भीम एक पत्थर पर गिर पड़ा। भीमे के गिरते ही वह पत्थर टूटकर बिखर गया-उसके टुकड़े सैकड़ों फुट दूर तक फैल गये।
इसी प्रकार से कुन्ती के तीसरे पुत्र के रूप में अर्जुन का जन्म हुआ-अर्जुन राजा इन्द्र के वरदान से पैदा हुआ था इसलिये उसमें इन्द्र जैसी शक्ति थी।
रानी माद्री को भी वरदान में दो जुड़वां पुत्र नकुल और सहदेव प्राप्त हुये। इस तरह राजा पांडू पांच पुत्रों के पिता बन गये।
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Kaurav Ke Janam Ki Kahani: Sau Putraकौरव के जन्म की कहानी: सौ पुत्र
Sau Putra Ke Janam Ki Kahani Mahabharat Hindi Story
दूसरी ओर गान्धारी के पेट से सौ पुत्रों ने जन्म लिया, जिनमें बड़े का नाम दुर्योधन था। इन सौ पुत्रों की कहानी बड़ी विचित्र है।
जिस समय गान्धारी ने यह सुना कि कुन्ती मां बन गई है तो ईर्ष्या के मारे उसने अपना पेट पीट लिया। उस समय उसे गर्भ था, जो पीटने से मांस के टुकड़े के रूप में बाहर आ गया। गान्धारी उस मांस के लोथड़े को उठाकर बाहर फेंकने लगी तो उसी समय वेद व्यास जी प्रकट होकर बोले "गान्धारी यह तुम क्या कर रही हो?"
"जब मैं मां नहीं बन सकती तो इन मांस के टुकड़ों को रख कर क्या करूंगी उधर कुन्ती मां बन गई और मैं बांझ की बांझ रही।"
"गान्धारी, इस मांस के टुकड़े को उठाकर सौ बार धो दो। बस हर बार तुम्हें एक पुत्र प्राप्त हो जाएगा।"
इस प्रकार गान्धारी सौ पुत्रों की मां बन गई।
दुर्योधन के जन्म लेते ही आकाश पर हजारों गिद्ध मंडराने लगे थे। जंगल में गीदड़ आवाजें निकाल रहे थे। शहर के सारे कुत्ते रोने लगे।
दुर्योधन के पैदा होते समय भयंकर तूफान आये, भूकम्प आया जिसके कारण पृथ्वी कांपने लगी।
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