Categories: General

Himachal Pradesh Ki Lokatha: कब आयेगा वसन्त? हिमाचली लोककथा

न्द्रताल झील, लाहौल को स्पीति नदी से मिलानेवाली घाटी कुंजम ला के बगल में, एक तराई में थी। सर्दियों में झील का ऊपर का पानी जम जाता था। गर्मियों में धनी हरी घास से भरे पर्वत के ढलान सुन्दर दिखाई पड़ते थे। चन्द्रताल के जल में बर्फीली चोटियों के प्रतिबिम्ब का दृश्य बड़ा मनोहारी लगता था। 

आसपास के गांवों के गडेरिये अपने भेडों को लेकर वहाँ आया करते थे। भेड़ वहाँ के चरागाहों को छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे, इसलिए अधिकतर गड़ेरिये जाड़ा आने तक वहीं रुक जाते थे।

नीमा चन्द्रताल के सबसे निकटवाले गांव हँसे का निवासी था । वह अपने भाई और उसकी पत्नी डोल्मा के साथ रहता था। डोल्मा लडाकी औरत थी। सर्दियों में, जब नीमा घर पर होता, डोल्मा उससे घर के कई काम करवाया करती थी, जैसे लकड़ी काटना, पानी लाना आदि। 

वह बोलने में तेज-तर्रार थी और उसे सुबह से शाम तक परेशान किया करती थी। डोल्मा उसे अक्सर कहती, “तुम एक बीवी ले आओ जो तुम्हें और मुझे मदद करे। फिर तुम जो चाहोगे, हर चीज मिल जायेगी।”

नीमा हमेशा गर्मियों के आने का इन्तज़ार करता रहता, क्योंकि, तभी वह पर्वत के हरे-भरे ढलानों पर भेड़ों को चराने के लिए ले जाता था। वह डोल्मा के दिये खाने-पीने का सामान अपने साथ ले जाता । भेड़ों को पहाड़ों पर चढ़ने में बड़ा मजा आता था। हरी घास पर पाँव पड़ते ही वे उछलने-कूदने लग जाते थे। नीमा उन्हें आजाद छोड़ देता और खुद किसी एक गुफा को साफ सुथरा कर खाने-पीने का सामान रखने तथा भेड़ों के लिए बाड़े बनाने में व्यस्त हो जाता था। 

यह सब कर लेने के बाद गुफा के सामने सूखी पत्तियों के बिछौने पर लेट जाता और मुलकिला पहाड़ की चोटियों पर मंडराते बादलों को निहारने लगता। शाम को वह भेडों को हाँक कर बाडे के अन्दर ले आता। फिर वह खाना खाता और बहुचर्चित चन्द्रताल की परी के बारे में सपने देखता हुआ सो जाता।

एक वार, जब पूर्णिमा की रात थी, नीमा झील के निकट अंगीठी के बगल में बैठा था। उसे नींद नहीं आ रही थी और वह विचार-शून्य होकर चन्द्रताल के स्वच्छ जल में चन्द्रमा के प्रतिविम्ब पर मुग्ध हो रहा था। तभी वह किसी स्त्री का कंठ-स्वर सुन कर चौंक गया। क्या यह उसकी कल्पना मात्र थी, उसे सन्देह हुआ, लेकिन उसे पूरा विश्वास था कि, उसने किसी स्त्री का स्वर सुना है। उसने पीछे मुड़ कर देखा । 

कुछ दूरी पर झील के किनारे सचमुच एक सुन्दर युवती महीन धवल वस्त्र में लिपटी खडी मुस्कुरा रही थी।

वह धीरे-धीरे चलती हुई नीमा के पास आई और मधुर मन्द स्वर में बोली, “मैं चन्द्रताल झील की परी हूँ। मैं तुम्हें बहुत दिनों से देख रही हूँऔर तुमसे दोस्ती करना चाह रही हूँ। तुम्हारा नाम क्या है? तुम एक खूबसूरत लड़के हो।’

“मैं हँसे गाँव का रहनेवाला नीमा हूँ।” उसने अपना परिचय दिया। “मैं यहाँ गर्मियों में अपने भेड़ों के साथ आता हूँ। मैंने चन्द्रताल-परी के बारे में बहुत कुछ सुना है, हालांकि किसी ने उसे, लगता है, देखा नहीं है।” वह एक लम्बी मुस्कान के साथ बोला।

“नीमा, जब भी तुम यहाँ आते हो, वही मेरे लिए बसंत है और जब चले जाते हो, तभी वह मेरे लिए शीतकाल है।” परी ने प्यार से कहा। “तुम्हें सोये हुए देखकर मुझे हमेशा अच्छा लगता था। मैं सिर्फ रात में ही झील से बाहर आ सकती हूँ और आज तुम्हें जगा हुआ देख बड़ी हिम्मत करके तुम्हारे पास आई हूँ। क्या मेरे साथ चलोगे, नीमा?” परी ने बड़े स्नेह के साथ कहा।

नीमा वहाँ अवाक खड़ा रहा। परी निःसंकोच उसका हाथ पकड़ कर झील की ओर बढ़ने लगी।

झील में कदम रखते ही आश्चर्य कि नीमा भी परी के साथ-साथ पानी की सतह पर चलने लगा। जब वे झील के मध्य में पहुंचे तब परी ने अपना जादू का डंडा घुमाया। तभी वहाँ का पानी हट गया और नीचे जाने की सीढियाँ दिखाई पड़ीं। 

दोनों सीढियाँ से नीचे उतर कर एक ऐसे सुन्दर महल में पहुंचे जहाँ की दीवारों में अन्धेरी रात में जगमगाते तारों की तरह हीरे जड़े थे। फर्श मानों चमचमाते सोने के पत्तों से बनी हो। सैकड़ों परियों ने आकर उनका स्वागत किया और वे इन दोनों को अन्दर के कमरों में ले गये।

नीमा ने अनुमान लगाया कि उसे यहाँ लाने वाली परी अवश्य ही परियों की रानी होगी। अन्य परियों ने उसे रेशमी वस्त्र पहनाया और इत्र छिडका। फिर वे रानी परी और नीमा के लिए सोने के थालों में स्वादिष्ट फल और सोने के प्यालों में मीठे पेय ले आये। उन्होंने रानी परी के हाथ में तितली के परों से बना एक पंखा दे दिया। वह नीमा को पंखा झलने लगी, जिससे नीमा को शीघ्र ही नींद आ गई। भोर होते ही वह उठा और रानी परी उसे झील के किनारे छोड़ गई और रात को पुनः मिलने का वादा किया। नीमा जल्दी से बाडे की ओर गया और अपने भेडों के बाड़े का दरवाजा खोल दिया।

रानी परी हर रात नीमा को अपने महल में ले जाती और दूसरे दिन सवेरे छोड़ जाती। गर्मियों के दिन जैसे-जैसे बीतने लगे, वह चिन्तित रहने लगा कि सर्दियों के आने पर क्या होगा।

एक दिन उसने हवा में ठण्ड महसूस किया। मैदान में तुषार दिखाई पड़ा और शाम तक झील जम गई। उस रात को उसने परी से कहा कि उसे वापस जाना होगा क्योंकि मुलकिला के ढलानों पर बहुत कम हरी घास है। यदि वह भेड़ों को तराई में नहीं ले गया तो वे बच नहीं पायेंगे।

रानी परी उदास हो गई। उसने अनुरोध किया, “नीमा, वादा करो कि वसन्त ऋतु में जब फूल खिलने लगेंगे और पर्वत के ढलानों पर हरी घास फिर से उग आयेगी तब तुम जरूर आओगे। मैं लम्बे शीतकाल तक तुम्हारा इन्तजार करूँगी। यह भी वादा करो कि हम दोनों की मुलाकात के बारे में तुम किसी से कुछ नहीं बोलोगे।”

नीमा ने वादा किया। जब परी रानी झील के तट से चली गई तब नीमा की निगाहें तब तक उस पर टिकी रहीं जब तक उसने झील के मध्य में पहुंच कर जादू की छड़ी नहीं घुमाई। अगले ही क्षण वह अदृश्य हो गई। नीमा के मुँह से दुख की एक आह निकल गई। वह भेड़ों के साथ अपने गाँव की ओर चल पड़ा। भेड ठण्डी हवा से बचने के लिए तेजी से दौड़ने लगे।

उस जाडे के मौसम में डोल्मा ने देखा कि नीमा ज्यादातर अकेला रहता है। कभी-कभी वह देर से सवालों का जवाब देता है। अभी सर्दियाँ खत्म नहीं हुई थीं, लेकिन हर रोज सवेरे नीमा क्षितिज को निहारता रहता था। सूरज चोटियों से बाहर देर से निकलता था, घास अभी भी भूरी थी और पेड़-पौधे सूखे थे-अभी फूलों में कलियाँ नहीं फूटी थीं।

एक दिन डोल्मा ने देखा कि नीमा पर्वतों की ओर जाने की तैयारी कर रहा है। जब उसने खाने का सामान माँगा तो डोल्मा चकित रह गई। “नीमा, गर्मियाँ अभी शुरू नहीं हुई हैं। अभी भी बर्फ जमी है भेड़ मर जायेंगे। बर्फ पिघलने में एक-दो सप्ताह और लग जायेंगे।”

नीमा ने बहुत देर तक कोई उत्तर नहीं दिया। डोल्मा ने सोचा कि उसे विचारों में खोने नहीं देना चाहिये। उसने उसे पुकारा, “नीमा, यहाँ आओ और कुछ लकडियाँ काट दो।”

वह अभी भी गहरे विचारों में खोया था। “नीमा!” डोल्मा चीखती हुई बोली, “तुम अपने को क्या समझते हो? स्पीति का देवता? और तुम चाहते हो कि मैं सोने के प्याले में हुजूर की सेवा में गरम शोरबा परोस कर दूं?”

नीमा ने डोल्मा को कभी उलाहना नहीं दिया था। लेकिन आज उस पर नाराज था। “शोरवा तुम इसे कहते हो? यह तो जादूगरनी की शराब जैसा है । याक भी इसे देख कर मुँह फेर लेगा। पह!”

डोल्मा को लगा मानों किसी तेज धार से उस पर वार कर दिया गया हो । “अच्छा ! तो तुम्हें मेरा खाना पसन्द नहीं आता। तुम्हारी बात से तो ऐसा लगता है जैसे चन्द्रताल की परी तुम्हें सोने के प्याले में मदिरा पिला रही हो! श्श!”

“पूरी पिछली गर्मियों में यही तो होता रहा। वह हर रात आकर मुझे ले जाती और सुबह में छोड़ जाती। तुम्हें क्या पता है?” अचानक नीमा को याद आया कि रानी परी ने उसे उसके साथ मुलाकात की बात किसी को बताने से मना किया

“तो यह बात है। तब उसी परी के पास क्यों नहीं चले जाते।” डोल्मा फुट पड़ी। पर शीघ्र उसने महसूस किया कि उसे इतना कठोर नहीं होना चाहिये था। तभी अचानक नीमा घर से बाहर निकल गया।

नीमा सीधे निकट के मठ में जाकर प्रार्थना करने लगा। उसने प्रार्थना की कि गर्मियाँ जल्दी शुरू हो जायें। कुछ देर बाद वह घर जाकर लकड़ियाँ काट्ने लगा। आवाज सुन कर डोल्मा बाहर आई और सिर्फ मुस्कुराई।

हर सुबह नीमा बाहर आकर ध्यान से यह देखने की कोशिश करता कि क्या पहाड़ के ढलानों पर कुछ हरियाली आई है या नहीं। बह, जो भी घर का काम उसे दिया जाता, तुरन्त कर देता और दौड़ता हुआ मठ में जाकर यह पुकार उठता, “हे प्रभु! बता कि कब आयेगा वसन्त?”

और आखिरकार जब वसन्त आ गया, वह अपने भेड़ों को लेकर मुलकिला की ओर चल पड़ा। उसने गुफा की सफाई की, भेड़ों के लिए बाड़ा बनाया और वह रात में झील के तट पर जाकर परी रानी की प्रतीक्षा करने लगा। लेकिन वह नहीं आई। एक रात, दूसरी रात और इस प्रकार सात रातें बीत गई पर परी दिखाई नहीं पड़ी। क्या वह उससे नाराज हो गई है? यह उसे कैसे पता चलेगा?

कुछ दिनों के बाद उससे रहा नहीं गया। “यदि वह नहीं आती तो मुझे उसके पास क्यों नहीं जाना चाहिये?” नीमा धीरे-धीरे झील के पानी में उतरा और आगे बढ़ने लगा। वह गहराई में उतरता चला गया, पर मध्य तक नहीं पहुंच पाया। उसके बाद उसे किसी ने नहीं देखा।

✍✍✍✍✍

…..

Recent Posts

Desh Bhakti Hindi Comics Story: Veer Vrishabh

पूर्वी तट पर कुजंग नामक एक छोटा- सा राज्य था। उसकी राजधानी प्रदीप नगरी थी। उसके शासक पराक्रमी…

1 year ago

Mahamall karnataka Ki Lokkatha: महामल्ल कर्नाटक की लोककथा

बात पुरानी है। कर्नाटक भू-भाग के शुभवती राज्य में शंबल नाम के राजा का राज था।…

2 years ago

Lokkatha Kerla Ki Hindi: डरपोक | केरल की लोककथा Folktale

लगभग दो सौ वर्ष पुरानी बात है। केरल में तालंगोडू गांव में पार्वतम्मा नाम की…

2 years ago

Indian History Story Hindi: Panna Ka Tyag | हिंदी कॉमिक्स

Indian History Story Hindi: Panna Ka Tyagइंडियन हिस्ट्री स्टोरी हिंदी :पन्ना का त्यागराजस्थान के सुप्रसिद्ध राज्य…

2 years ago

1857 की वीर गाथा | प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम | Rani Laxmi Bai Ki Kahani

 पूरे देश में यत्र-तत्र क्रान्ति की आग धधक रही थीं। क्रान्ति के दो महान युवा…

2 years ago

Mahabharat Kahani Hindi: राजा शान्तनु और सत्यवती महाभारत कहानी

राजा शान्तनु का मन इस संसार से ही विरक्त हो चुका था...अपनी पत्नी और सन्तान…

2 years ago