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Sukrat Ke Prerak Prasang: क्षमा वीरों का भूषण [ सुकरात ]

Sukrat Ke Prerak Prasangकाअंश:

एक दित की बात है, सुकरात अपनी मित्र मण्डली के साथ चिन्तन-मनन में इतने लीन हो गये कि घर बहुत देरी से पहुंचे। सुकरात को देरी से आये देखकर उनकी पत्नी के आंखों में खून प्रवाहित हुआ । अधरावली में कम्पन बड़ा । जोर-जोर से गरजने लगी । खरी-खोटी सुनाने लगी…।

यूनान देश के बहुत बड़े विचारक ‘सुकरात’ का नाम आज भी दुनिया में सुप्रसिद्ध है। वो कभी-कभी अपने बिचारों में इतना डूबे रहते थे कि उन्हें खान-पान आदि का भी भान नहीं रहता था।

घर पहुंचते-पहुंचते उन्हें देर हो ही जाती थी। उनकी पत्नी घर बैठी-बैठी उनकी प्रतीक्षा में थक जाती थी। जब वे आते तो उनकी पत्नी कहा करती, ‘आप समय पर आ जायें तो भोजन आदि से समय पर निवृत हो जायें।

सुकरात कहते, ‘अच्छा, मैं ध्यान रखूगा, समय पर आने का प्रयत्न करूंगा ।

एक दित की बात है, वे अपनी मित्र मण्डली के साथ चिन्तन-मनन में इतने लीन हो गये कि घर बहुत देरी से पहुंचे।

उनकी पत्नी कलहकारिणी थी। बात-बात पर झगड़ा करती थी। जब उसे गुस्सा आता तो वह विवेक-भ्रस्टा बन जाती थी। छोटे-बड़े का उसे भान नहीं रहता था।

सुकरात को देरी से आये देखकर उसकी आंखों में खून प्रवाहित हुआ । अधरावली में कम्पन बड़ा । जोर-जोर से गरजने लगी । खरी-खोटी सुनाने लगी।

सुकरात मौन रहकर, उसकी झीड़कियां सुनते रहे ओर रोटी खाते रहे। भोजन करने के बाद उन्होंने शांत भाव से पत्नी की ओर देखा । इससे उसका गुस्सा दुगुना हो गया, मानो तपते तवे पर पानी डाला हो। मुंह से फिर अनर्लग शब्दों का प्रयोग करने लगी। कृत्य- अकृत्य का भाव भूल गई ।

सुकरात ने सोचा–इसका गुस्सा शान्त नहीं हो रहा है, अब यहां रहना उचित नहीं। घर से चले। ज्यों ही बाहर जाने लगे यों ही उसकी पत्नी हारकर और भी झल्‍लाई। मन का वेग बढ़ने लगा। ‘थरंथराने लगी । जपने वश में न रह सकी।

झट उठी, रसोई के बाहर आई। संफेदी करने के लिए घडे में पढ़ें हुए चुने के घोल को उन पर उंडेंल दिया।

फिर भी सुकरात ने क्षमा को नहीं छोड़ा । उन पर तनिक भी गुस्सा नहीं किया । अत्यंत शान्त-भाव से हंसंकर कहा—मैंने सुना था, पहले बादल गरजते हैं औौर फिर बरसते हैं। तूम जिस समय गरज रही थीं तब मैं सोच रहा भा कि अब बरसोगी भी। और. इतने में ही काम बन गया । कम से कम बिजली नहीं गिरी ।

सुकरात का यह रहस्य-भरा’ उत्तर सुनकर वह पानी-पानी हो गईं, सुकरात के चरणों में पड़ गई, गुस्सा शान्त हो गया और अपने दुष्कृत्य

पर पछताने लगी ।

क्षमा वीरों का भूषण है। क्षमावान के आगे दुश्मन भी झुक जाता है। अतः हर व्यक्ति को अपने जीवन भें अधिक से अधिक क्षमांधर्म अपनाना चाहिए ।

वीरों का भूषण क्षमा, क्षमा ह्रदय का हार ।

क्षमावान के सामने, अनवत है संसार ॥

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