Kalyug Ki Kahaniकाअंश:
Kalyug Ki Kahani: एक शरारती चालाक लड़का था। उसके पिता का देहान्त हो जाने के कारण वह अति स्वतंत्र हो गया। बाल्य-अवस्था से ही वह दुर्गुणों का दास बन……।
एक शरारती चालाक लड़का था। उसके पिता का देहान्त हो जाने के कारण वह अति स्वतंत्र हो गया। बाल्य-अवस्था से ही वह दुर्गुणों का दास बन गया था।
जुआ खेलता था। शराब के नशे में चूर रहता था। एक दिन उसे रुपयों को आवश्यकता थी । उसने सोचा, कहां से लाऊं, चोरी करना जानता नही हूं। आखिर उसके वैज्ञानिक मस्तिष्क ने एक रास्ता खोज निकाला– किसी दूसरे गांव मे एक बुड़ढे को औरत की जरूरत थी । वह लड़का वहां जा पहुंचा ।
बुडढ़े से बातें करने लगा। उसने कहा–सेट साहब ! ओरत बिना घर बरबाद हो जाता है । शमशान जैसी वीरानगी रहती है। आपकी.यदि इच्छा हो तो पंद्रह सौ रुपया दो, मैं अपनी विधवा बहन का नाता आपसे करवा दूंगा|
बूढ़े के पास धन बहुत था। वह बोला–तूम, जो कहते हो सब स्वीकार है।
लड़का घर पहुंचा। मां के साथ मीठी-मीठी बात बनाता हुआ बोला—माँ, चलो कुछ दिन के लिए तुम्हें मौसी के यहां छोड़ आाऊं।
मां-ने- पुत्र का कहा हुआ मान लिया। ऊंट पर चढ़कूर वहू कोसों दूर उस गाँव में अपनी माँ को ले गया।
उस बुढे के घर जाकर उसने उसे उतार दिया और पर्दहू सौ रुपये गिनने लगा।
उसकी मां ने सोचा, यहां कहां से आया। माँ को सन्देह उत्पन्त हुआ । जांच-पड़ताल करने से सही स्थिति का ज्ञान हुआ। उसने जोर,से हल्ला मचाया।
अड़ोसी-पडोसी अनेक लोग एकत्र हो गये। दोनो तरफ की जानकारी करने से सब लोग समझ गये कि दोनों ओर से धोका हुआ है । वह मां ऐसा दुष्कृत्य करना नहीं चाहती थी । बड़ी कठिनता से वह उस मायाजाल से निकलकर घर पहुंची ।
मन ही मन सोचने लगी – हाय ! ऐसा पुत्र” **
यह कलियुग की एक घटित घटना है। कुछ ही समय पहले अखबार में इसका उल्लेख था| स्वार्थ-सिद्धि के लिए मानव मानवता को भूल जाता है और एक-दूसरे को धोखा देने के लिए क्रूर बन जाता है।
किन्तु जब तक नैतिकता की लो नही जलेगी, तब तक देश में अंधेरा ही अंधेरा छाया रहेगा।
लोभी फंसकर लोभ में, करता मायाजाल ।
मां को भी पुत्र ने दिया, धोखा अति विकराल
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