Kahani Murkh Balakकाअंश:
सेठ को एक दिन किसी कार्येवश बाहर जाना था, किन्तु मन से चिन्ता थी कि दुकान पर कौन बैठेगा । लडके ने कहा– पिताजी ! चिन्ता करने की…। इस Kahani Murkh Balak को अंत तक जरुर पढ़ें…
एक महाजन था । उसके घी ओर तम्बाकू का बहुत बड़ा व्यवसाय था। वह अपने व्यापार मे कभी भी अनीति नही करता था। सरल-स्वभावी व मघुरभाषी होने के कारण वह आस-पास के क्षेत्र में जनप्रिय था। उसका एक भोला-भाला लड़का था।
सेठ को एक दिन किसी कार्येवश बाहर जाना था, किन्तु मन से चिन्ता थी कि दुकान पर कौन बैठेगा । लडके ने कहा– पिताजी ! चिन्ता करने की जरूरत नही है, दुकान को मैं सम्भाल लूगा । आप मुझे वस्तुओं के भाव बता दें ।
पिता ने कहा–पुत्र ! अपनी दुकान पर घी और तम्बाकू दो ही चीज हैं। दोनों के एक भाव हैं। पर एक बात विशेष याद रखना, जब तक खुले हुए टीन खत्म न हो जायें, दूसरा टीन मत खीलना।
पुत्र को शिक्षा देकर पिता गांव चला गया । पुत्र दुकान पर आया । चारों तरफ नजर दौड़ाई । एक तरफ घी के टीन पड़े थे और एक तरफ तम्बाकू के टीन। दोनों ओर एक-एक टीन आधे खाली थे। उसने सोचा–पिताजी कितने मूर्ख हैं, एक भाव की वस्तु के लिए दो टीन रोक रखे है।
उसने घी का टीन उठाया और तम्बाकू वाले टीन में उसे उड़ेल दिया । इतने में घी का ग्राहक आया। लड़के ने उस टिन में से घी दिखाया।
ग्राहक ने कंहा—घी में तम्बाकू कैसे ? हमें असली घी चाहिए।
लड़का गुस्से में आकर बोला–यह तो असली घी है, लेना हो तो लीजिए, वरना चले जाइये यहाँ से !
थोड़ी देर बाद तम्बाकू का ग्राहक आया और पूछा–सेठ साहब कहां हैं ?
वह बोला—सेठ की क्या आवश्यकता है, मैं बैठा हूं उनका लड़का । कया चाहिए ?
ग्राहक बोला–तम्बाकू लेने आया हूं। उसने उसी टीन में से तम्बाकू लाकर दिखा दी।
ग्राहक ने कहा–मूर्ख ! यह कैसा तम्बाकू है?
लड़का बोला–मूर्ख मैं क्यों, मुर्ख तुम हो, लेना हो तो लो वरना आगे चलो । यहां अंट-संट बोलने की जरूरत नहीं है ॥
इस प्रकार अनेक ग्राहक आये ! उनको वही दिखाया जाता रहा और सब खाली हाथ लौट गये|
दूसरे दिन पिता आया। पुत्र से दुकान का हाल पूछा तो वह गरज पड़ा- पिताजी ! आपने सब ग्राहकों को बिगाड़ रखा है। जो भी आता है मुझे मूर्ख व गधा कहता है। मैं आपका पुत्र मुर्ख क्यों ? मूर्ख वो हैं।
पिता ने कहां–पुत्र ! तूने ग्राहकों को माल अच्छी तरह नहीं दिखाया होगा। चलो दुकान पर चलें ।
पुत्र ने कहा–पिताजी ! एक समझदारी तो आपकी भी मुझे अच्छी नहीं लगी। घी और तम्बाक् दोनों का एक भाव है, फिर भी आपने अलग-अलग टीन रोक रखे थे । मैंने उनको मिलाकर एक टीन खाली कर रख दिया।
पिता ने हंसते हुए लाड़ले बेटे से कहा–बेटे ! जाओ, उस एक टीन को भी कूड़ेदान में डालकर खाली कर आओ और तुम अपना दोष देखो ।
वास्तव में ग्राहक मूर्ख नही हैं, मुर्ख तुम हो।
जो व्यक्ति स्वयं की श्रुटि को नही देखता है उसका कभी भी सुधार नही हो सकता। अतः सब आत्मदोषदर्शी बनें—इसी में सबका भला है ।
अपनी त्रुटी का है नहीं, जिसे ज्ञान तिल मात्र ।
‘मुनि कन्हैया’ वह मनुज, बने नहीं गुण-पात्र ॥
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