Kahani Chuha ki Hindi का अंश:
एक चूहे ने तपस्या करके शंकर से वरदान मांगा कि है प्रभो ! मुझे रात-दिन बिल्ली का भय रहता है| मैं सुख से नीद नही ले सकता । न सुख से खाना ही खा सकता हूं । अत: आप मुझे बिल्ली बना दीजिए...। इस Kahani Chuha ki Hindi को अंत तक जरुर पढ़ें...
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Kahani Chuha ki Hindi: Abhay Kaun ?
कहानी चुहा की हिंदी: अभय कौन ?
एक चूहे ने तपस्या करके शंकर से वरदान मांगा कि है प्रभो ! मुझे रात-दिन बिल्ली का भय रहता है| मैं सुख से नीद नही ले सकता । न सुख से खाना ही खा सकता हूं । अत: आप मुझे बिल्ली बना दीजिए ।
शंकर ने वैसा ही किया। बिल्ली बन जाने के बाद अब उसे कुत्ते का भय सताने लगा।
इसी दुविधा को लेकर वह शंकर के पास गया और बोला---मैं तो कुत्ते के भय से आतंकित हूं। हृदय हरदम कांपता रहता है कि कही कुत्ता निगल न जाये । अतः कृपा करके आप मुझे चीता बना दीजिए |
शंकरजी उस पर संतुष्ट थे। अत: उसकी बात कैसे टाल सकते थे ! वह चीता बन गया ।
अब भी वह अभय कहां था | हर समय उसे जंगल के स्वामी सिंह का भय कुरेदने लगा। मन में अशान्ति का स्रोत बहने लगा ।
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दौड़ा-दौड़ा फ़िर शंकर की छत्रछाया में पहुँचा और हाथ जोड़कर बोला--देव ! क्या करूं, मन में स्वस्थता नही है, शांति नहीं है। कहीं सिंह आकर मुझे कुचल न दे ।
क्योंकि वह मेरे से बलिष्ठ हैं। शंकर से उसे चीते से सिह और सिंह से आखिर मनुष्य बना दिया।
शंकर ने उससे एक दिन पूछा-क्यों ? अब तो कोई डर नही सता रहा है ? तुम तो अब सर्वेश्रेष्ठ योनि में पहुंच गया।
उसने कहा-देव ! मैंने तो सोचा था कि मनुष्य होने के बाद कोई समस्या रहेगी ही नहीं। किसी का भय सताएगा ही नहीं।
किन्तु यह बात नही है। अब भी मेरे मन में समाधि नहीं है। हरदम मैं चितित रहता हूं। मौत का डर आज भी सता रहा है। मनुष्य होने पर भी मेरी समस्या सुलक्ष नहीं पायी है। मैं चाहता हूं कि मुझे फिर चूहा बना दिया जाये।
शंकर ने वर दिया और चूहा अपने भूल रूप में आ गया।
मृत्यु-विजेता ही अभय बनता है । अभय बने बिना जीवन में सुख शान्ति का संचार नहीं है । अतः अभय की साधना का विकास करना आवश्यक हैं ।
मत्यु-विजेता' बन सके, जन में अभय महान।
अभय बने बिन क्या कभी, मिल सकता निर्वाण ॥
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